Heartfulness Meditation experience : हार्टफुलनेस से मेरे अंदर कृतज्ञता किस तरह पैदा हुई ?मेरा अनुभव

Heartfulness Meditation experience

दाजी कहते है – कृतज्ञ हृदय एक प्रसन्न हृदय होता है.मैनें जब यह उद्धरण पढ़ा तो कृतज्ञता के बारे में मेरे किए कुछ प्रयोग फिर से याद आ गए.यह तब की बात है जब मैं हार्टफुलनेस का अभ्यास नहीं करता था पंरतु यूट्यूब पर सेल्फ हेल्प,मेडिटेशन से संबंधित वीडियो खूब देखता था.

Source – Daaji instagram

वहां कृतज्ञता की शक्ति या महत्व के बारे में काफी प्रचारित किया जाता है. उनके बताये अनुसार मैनें हर सुबह 5 चीजें जिनके प्रति मैं कृतज्ञ (grateful) था,लिखनी शुरू की.काफी दिन यह अभ्यास किया पंरतु मुझे परिणाम नगण्य मिले.जैसा कि स्वाभाविक है,मैने थोड़े दिनों में ही छोड़ दिया. निष्कर्ष यह था कि इस अभ्यास ने मेरे लिए काम नहीं किया.

Heartfulness के बाद 

स्तु, मैं फिर Heartfulness से जुड़ा,सहज मार्ग का साहित्य पढ़ा.यहां भी कृतज्ञता को काफी महत्व दिया जाता है.कहा यह भी जाता है कि कृतज्ञता कृपा को आमंत्रित करती है.जो कुछ मैं उससे समझा वो ये कि हमारी आध्यात्मिक प्रगति में कृतज्ञता रसायन विज्ञान के उत्प्रेरक की तरह कार्य करती है;यह साधना तो नहीं है पर इसके होने से साधना तीव्र जरूर हो जाती है.

हां तो, अनुभूति से यह अभी भी कोसों दूर था.फिर ज्यों ज्यों ध्यान की यात्रा आगे बढ़ती रही, त्यों त्यों कृतज्ञता अपने अंदर महसूस होनी शुरू हुई.इसमें डायरी लेखन ने मुझे स्पष्टता दी और मुझे भान होने लगा कि सहज मार्ग ने मुझे क्या दिया?जब सहज मार्ग से पहले के ‘स्वयं’ और सहज मार्ग के बाद के ‘स्वयं’ में मैने तुलना की तो हृदय कृतज्ञता से भर गया.

कृतज्ञता की झलक तो मुझे पहले भी थोड़ी थोड़ी मिल रही थी परंतु इस बार कृतज्ञता का अहसास किसी हाथ की अंजुली भर नहीं अपितु नदी की धारा जैसा था.जीवन को देखने का एक नया नजरिया मिल गया था जिसे अंग्रेजी में ‘प्रेस्पेक्टिव’ कहा जाता है.तब मुझे एक नई दृष्टि मिली कि पहले का ‘कृतज्ञता का अभ्यास’ मात्र औपचारिकता भर थी.मैं लिखता था ‘ मैं अपने स्वास्थ्य के प्रति कृतज्ञ हूं ‘ परंतु असल में मन में यही बात थी कि मेरा वजन इतना ज्यादा क्यों है. मैं लिखता था ‘ मैं अपनी बुद्धि के प्रति कृतज्ञ हूं ‘ पर मैं अपने बाइपोलर डिसऑर्डर के लिए इसी बुद्धि को गालियां निकालता था कि काश! इतनी बुद्धि ना होती तो ओवरथिंकिंग भी नहीं होती,मैं मिडियोकर लड़का रहता,इतना भुगतता तो नहीं…तो बात यह है कि उस समय अभ्यास इसलिए असफल हुआ क्योंकि मेरे ‘फंडामेंटल’ गलत थे.

गलत इसलिए थे क्योंकि मेरे में अनुभूति नहीं थी मात्र वो वाक्य थे.वो भी मेरे नहीं उस वीडियो वाले के थे.बिना अनुभूति की कृतज्ञता असल में ‘सतही कृतज्ञता’ है.तो मैं आपको उस अनुभव के बाद के ‘प्रेस्पेक्टिव’ के बारे में बता रहा था. अब ये धीरे धीरे और गहरा होता गया तो जीवन के अन्य पहलुओं की तरफ भी यही कृतज्ञता की धारा बहने लगी.मैं कहता तो था- जो है मैं उसकी कद्र करता हूं पर मैं ऐसा भी चाहता हूं. एक अन्य उदाहरण से बताऊं तो मालिक आपने मुझे बहुत कुछ दिया है,मैं उसके लिए आपके प्रति कृतज्ञ हूं,आप बस एक चीज और कर दो… मुझे और बाद में पता चला कि यहां गड़बड़ है. कृतज्ञता में शिकायत का कोई स्थान नहीं है.अगर अब भी शिकायत है इसका मतलब कृतज्ञता अभी पूरी आई नहीं है.

सहज मार्ग के दस उसूल में 7 वां सिद्धांत थोड़ा और आगे बढ़कर यह कहता है कि अगर आपके साथ किसी ने गलत किया है तो उससे बदला ना लें अपितु इस ईश्वर की इच्छा माने और उसके प्रति कृतज्ञ हो. अगर आपके साथ गलत भी हो गया तो भी कृतज्ञता.इससे मेरे लिए एक और द्वार खुला कि जो चीज मेरे पास नहीं है या जो मेरे हिसाब से मेरे साथ अनुचित हुआ हो,ईश्वर को उसके लिए भी धन्यवाद कहना चाहिए,दूसरे शब्दों में ” हमें कृतज्ञ जो मिला है सिर्फ उसके बारे में ही नहीं होना है बल्कि जो नहीं मिला है उस बारे में भी होना है “.मैं पूरी ईमानदारी के साथ कहना चाहूंगा कि हां,यह थोड़ा ठेढ़ा काम है.पिछली बार कृतज्ञता ठेढ़ी लग रही थी पर अब वो अनुभव में आ गई है तो मुझे मालिक पर विश्वास है कि यह भी आ जाएगी.

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कृतज्ञता के चरण 

खैर मालिक की कृपा से मैंने अब तक कृतज्ञता के चार चरण अनुभव किए है,जो चेतना के विस्तार के साथ ज्यादा भी हो सकते है  – 

1. कृतज्ञता का स्थूल रूप –

इस चरण को मैं स्थूल चरण कहूंगा.मैने यह अपने आस पास देखा है जैसे किसी के कुछ अच्छा हो गया,नौकरी लग गई,शादी हो गई,बच्चे हुए इत्यादि अवसरों पर ईश्वर की कृपा है,उनका लाख लाख धन्यवाद,सब उनकी माया है जैसे शब्दों में यह कृतज्ञता व्यक्त की जाती है.मैं गांव में देखता हूं कि शुभ कार्य होने पर ईश्वर को प्रसादी भोग चढ़ाया जाता है वहीं उनकी इच्छानुसार ना होने पर ईश्वर को गालियां भर भर के दी जाती है.खैर यह उनके ईश्वर से निजी रिश्ते के निजी वार्तालाप है.मैं इन्हें स्थूल रूप इसलिए कहना चाहूंगा क्योंकि ये भावना दैनिक कार्यों,गतिविधियों में या सामान्य परिस्थितियों में प्रकट ना होकर विशेष परिस्थितियों में उभरती है.इसका एक दूसरा प्रकार जैसा मेरी प्रारंभिक अवस्था में था,वो है.मैं कोई दिव्यांग या अंगभंग से ग्रसित नहीं हूं इसके लिए आभारी हूं पर मेरा शरीर फलाने जितना बेहतर नहीं है,यह शिकायत भी है.हम किसी सड़क पर रहने वाले को देखकर अपने सुख सुविधाओं की तरफ शुक्र गुजार तो होते है पर अगर सड़क के उस तरफ का आलीशान घर हमें अकृतज्ञ बना देता है.इसलिए मैं इसे स्थूल चरण कहना पसंद करूंगा.

2. आंतरिक कृतज्ञता का अंकुरण और फैलाव –

यदि हम एक अच्छे गुरु के सानिध्य में सही साधना करना शुरू करें तो हमारे हृदय में उनकी कृपा का प्रभाव अंकित होना शुरू होगा,और कृपा से कृतज्ञता बढ़नी शुरू होगी.आपकी जागरूकता बढ़ने के साथ साथ आप जानने लगते है कि मैं इतना लायक नहीं हूं,पर मुझे कितना कुछ दिया गया है.हमारे सहज मार्ग में अभ्यासियों के बीच एक कहावत है – मालिक,आपके पहाड़ जितनी मुसीबत को राई बना देते है.दूसरे शब्दों में कहूं तो

“जो परेशानी आपके गले की फांस बनी हुई थी,आपकी नींद,आपका जीवन अस्त व्यस्त कर देती थी अब केर के उस कांटे जितनी शक्तिहीन हो गई है,जो चुभती भी है तो मात्र  गुदगुदी होती है”. 

एकांत में बैठकर आप खुद को देखते हो,अपना अवलोकन करते हो. अपनी आंतरिक अवस्था में छोटे छोटे परिवर्तन देखना शुरू कर देते है.खुद के अनुभव से बताऊं तो एक बार परीक्षा केंद्र पर पेन की स्याही खत्म हो गई तो वहां के शिक्षक ने पेन दिया,जो कि स्वाभाविक बात होगी,एक दो बार पहले भी हुआ है पर तब मालिक के लिए मेरा मन कृतज्ञता से भर गया.मालिक ने किसी को माध्यम बनाकर मेरे लिए पेन की व्यवस्था की.है छोटी चीज़ के लिए मालिक की कृपा से ही हो रही है,इतनी कृतज्ञता अंतस में भरने के बाद भरे घड़े के जल की तरह बाहर आने लगती है और यही तीसरा चरण है.

3. आंतरिक कृतज्ञता का बाहरी रूपांतरण –

कृतज्ञता एक चरण और आगे बढ़ती है.जो कृतज्ञता अपने स्व या ईश्वर या गुरु के साथ शुरू हुई थी वह अब अपने आस पास के हर व्यक्ति, हर चीज,जीवन की हर चीज जो हमारे पास है,हमसे जुड़ी हुई है,उससे होने लगती है.अपने आस पास के स्वजनों के त्याग को अब तक हम हल्के में लेते है,उन्हें अनदेखा करते थे,उनके प्रति आभार और श्रद्धा पैदा होने लगती है. ध्यानमयी अवस्था,जो कृतज्ञता का भाव जागृत करने में अस्त्रों में ब्रह्मास्त्र जैसा शक्तिशाली है, सुगंधित पुष्प की तरह आस पास फैलने लगती है तो दूसरों में कमियों की जगह खूबियां पहले दिखने लगती है.कृतज्ञता अपना कमाल दिखाने लगती है,आप अच्छी चीजों के प्रति आभारी होते है तो अच्छी चीजें और अधिक आने लगती है…शिकायतें कम होने लगती है,इच्छाएं कम होने लगती है,हृदय में संतुष्टि गहरी होती जाती है क्योंकि अब आपको लगने लगता है कि मैं तो इतने के भी लायक नहीं था,अब जो मिल रहा है वो प्लस में ही है…मुबारक हो आप दिव्यता के पथ पर आगे बढ़ रहे है.

4. कृतज्ञता में एकलयता-

मैं नहीं जानता यह कितना लंबा चरण है या इसके और कितने उपचरण है या यह समस्त चरणों में से एक और चरण है .मैं बस यही कहूंगा कि मेरी समझ अभी तक इतनी ही है.अब कृतज्ञता आंतरिक या बाहरी नहीं रही,वह आपका हिस्सा बन गई हैइसी में 7वा नियम शामिल है.कोई बुरा भला कुछ भी करे,सब मालिक की इच्छा है वो उन्हें मेरा बुरा भला सब पता है.जो कुछ आ रहा है,मिल रहा है,आप उसमें रोक टोक नहीं करते.लालाजी के गंभीर फोड़े वाली बीमारी हो (ट्रुथ एटर्नल में विस्तार से बताया है इस बारे में) या बाबूजी के स्वास्थ्य क्षीणता,जिसका जिक्र चारीजी कई बार करते थे,और चारीजी के भी माइग्रेन हो या दाजी के पीलिया वाली बीमारी.वो क्या कुछ नहीं कर सकते पर यही कृतज्ञता का भाव था,इसमें मालिक की मर्जी है,वो मुझे कष्ट में नहीं देख सकते पर आज अब कुछ हुआ है तो अच्छे के लिए ही हुआ होगा.इसमें आप पूर्ण कृतज्ञ हो जाते है.शिकायतें,इच्छाएं,सब खत्म.स्वीकार्यता की गहन दशा. उस दिव्य के प्रति पूर्ण समर्पण.रोध अवरोध सब नगण्य.

तो आप स्वयं देखें कि आप कृतज्ञता के किस स्तर पर है.आत्म अवलोकन करें, डायरी में लिखें.नीचे कुछ प्रश्न है,जो आपके कृतज्ञता के स्तर को जांच सकते है –

  • परिवारजनों में जिन्हें आप नापसंद करते है,आपको जिनसे सबसे अधिक शिकायत भाव रहता है.क्या अब आपको उनकी खूबियां भी दिखती है?दिखती है तो भी किस मात्र में.उन्होंने जो नहीं दिया है उसके बदले जो उन्होंने दिया है,उसको किस स्तर तक देख पा रहे है.
  • दिन भर में कितनी बार दिल से अपने आप मालिक को धन्यवाद निकलता है.साधना के अलावा के समय. जिंदगी के हर छोटे अनुभव में आपको वह अनुभव मालिक द्वारा होने का आभास होता है.अगर हां,तो कितनी बार.
  • अगर आप पहले स्तर पर ही है तो आपके लिए सर्वश्रेष्ठ साधन अपने आप का अवलोकन…सहज मार्ग से पहले और सहज मार्ग के बाद के जीवन की तुलना करें,गहराई से समय लें…है छोटी से छोटी चीज नोटिस करें,फिर देखिए और हां,मालिक से प्रार्थना करें कि अब आप ही मुझमें कृतज्ञता का भाव पैदा करें.
  • आप अपनी अपूर्ण इच्छाओं के प्रति कैसे व्यवहार करते है,उनके प्रति किस स्तर की स्वीकार्यता आपमें आ गई है.बीमारी,परेशानी,विश्वासघात,काम में पड़ने वाली बाधाओं के प्रति आपके मन में पहली प्रतिक्रिया क्या होती है?क्या इसमें शिकायती भाव है या फिर कृतज्ञता की मालिक की मर्जी है,वो अपने आप कर देंगे…इच्छाओं की कमी,अपेक्षाओं की कमी कृतज्ञता के बढ़ने का संकेत है.अवलोकन करें और देखें.

धन्यवाद

8 thoughts on “Heartfulness Meditation experience : हार्टफुलनेस से मेरे अंदर कृतज्ञता किस तरह पैदा हुई ?मेरा अनुभव”

  1. Meditation is so Awesome…. Even I’m doing it for atleast 30 minutes a day….. Good website which gives good information

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