Electoral Bond

Electoral Bond : Electoral Bond क्या होता है ? जानें पूरा

इस पोस्ट में हम जानेंगे कि Electoral Bond क्या होता है ? अभी Electoral Bond की इतनी चर्चा क्यों है? क्या Electoral Bond का पूरा विवाद क्या है?

Electoral Bond क्या होता है?

Electoral Bond राजनीतिक दलों को दिया जाने वाला वह चंदा होता है जो SBI से आम नागरिक खरीदकर राजनैतिक पार्टियों को दे सकता है।यह गुप्त होता है।

जैसे मान लें कि आपको एक पार्टी को एक लाख रुपए देने है।

आप सीधे कैश देने की जगह SBI में जायेंगे और एक लाख का Electrol Bond खरीदेंगे और वह धन उस पार्टी के खाते में चला जायेगा।

इस प्रक्रिया को कहा जाता है कि आपने एक लाख के Electrol Bond खरीदे।

Electrol Bond कैसे काम करता है।

भारत में Electrol Bond 2017 के बाद से आया। पहले यहां राजनैतिक पार्टियों के लिए चंदे के लिए लिफाफे खरीदने का रिवाज था। बाद में इससे भ्रष्टाचार की काफी शिकायतें आने लगी।

जिसके बाद Arun Jaitley द्वारा,जो तत्कालीन वित्त मंत्री थे,वो Electoral Bond का विचार लेकर आए और लागू किया।

इसे लाने के पीछे कारण बताया कि इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और काले चंदे पर रोक लगेगी।

इस योजना को 29 जनवरी 2018 को लागू किया गया।

चंदा देने वाले 1 हजार,10 हजार,1 लाख,10 लाख और 1 करोड़ का बॉन्ड खरीद सकते है और अपनी पार्टियों को दान में दे सकते है।

सिर्फ उन्हीं पार्टियों को electoral Bond दिया जाएगा जिन्हें पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में न्यूनतम 1% वोट मिले हो।

 

विवाद की वजह

विपक्षी दलों और लोगों द्वारा इसके गुप्त होने पर प्रश्न उठने लगे। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई जिसके अंतर्गत Electoral Bond की पूरी राशि कितनी है,किस पार्टी को मिली है। इसका डाटा शेयर किया जाए?

याचिका में कहा गया कि बॉन्ड की जानकारी न देना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति के अधिकार का उल्लघंन है।

उनका आरोप था कि इसके जरिए काले धन को सफेद किया जा रहा है और सरकार द्वारा इसे छिपाकर खुलेआम भ्रष्टाचार किया जा रहा है।

तो सुप्रीम कोर्ट ने अभी SBI को Electoral Bond जारी करने के निर्देश दिए थे।

जब यह लिस्ट जारी हुई तो पूरे देश में विवाद मच गया।

इन सालों में राजनैतिक पार्टियों को कुल 12000 करोड़ के बॉन्ड मिले है जिसमें अकेली बीजेपी को 50 % से ज्यादा के बॉन्ड मिले है।

वहीं बाद में तृणमूल कांग्रेस और इंडियन नेशनल कांग्रेस का नंबर आता है।

सबसे अधिक डोनेशन फ्यूचर गेमिंग एंड हाउस सर्विस लिमिटेड ने दिया है वहीं दूसरे नंबर पर मेघा इंजिनियरिंग है।

सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया बॉन्ड

Electoral Bond
Electoral Bond

अभी अभी खबर आई है कि सुप्रीम कोर्ट ने electoral Bond को रद्द कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट के जजों ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया है।

CJI चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में बनी बेंच ने यह निर्णय लिया है।

उन्होंने बयान में कहा कि यह अवैध है। इस तरीके से काला धन और मनी लांड्रिंग को बढ़ावा मिलता है।

किस पार्टी को कितना Electoral Bond मिला है ?

अब हम SBI द्वारा जारी की गई लिस्ट के अनुसार सभी पार्टियों को मिले फंड के बारे में जानेंगे –

  • भारतीय जनता पार्टी को 6060 करोड़ रुपए का चंदा मिला है। जो कि कुल चंदे का आधा है। यह धनराशि अप्रैल 2019 से जनवरी 2024 तक की है।चूंकि भाजपा सत्ता में है तो स्वाभाविक रूप से उनको ही अधिकतम राशि मिली है
  • दूसरे नंबर पर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी है।जिसे 1609 करोड़ का चंदा मिला है। गौरतलब है कि सिर्फ एक राज्य में सरकार होने के बाद भी इतना चंदा आना ताज्जुब की बात है।
  • तीसरे नंबर पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस है।जिसे कुल 1412 करोड़ का चंदा आया है।चूंकि पार्टी की एक एक राज्य में सरकार है लेकिन पुरानी और राष्ट्रीय पार्टी होने के बाद भी काफी चंदा आ गया है।
  • चौथे नंबर की पार्टी का नाम बीआरएस है जिसे कुल 1214 करोड़ का डोनेशन आया है।
  • फिर उड़ीसा के नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी है।जिसे 775 करोड़ रुपए मिले है वहीं डीएमके को 639 करोड़ रुपए का बॉन्ड मिला है।

Electrol Bond देने वाली कंपनी

 

इसी तरह SBI ने एक दूसरी लिस्ट निकली जिसमें उन तमाम कंपनी और लोगों के नाम थे, जिन्होंने SBI से electoral Bond खरीदे थे।

  • फ्यूचर गेमिंग नाम की कंपनी ने सबसे अधिक 1368 करोड़ रुपए का चंदा दिया।गौरतलब है कि 2022 में इसी कंपनी पर ED ने छापेमारी की थी। जिसके बाद ही क्या यह सौदा तय हुआ ? यह सवाल सब कुछ रहे है।
  • मेघा इंजिनियरिंग नाम की कंपनी ने 966 करोड़ रुपए दिए।
  • वेदांता ग्रुप ने भी 400 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीद थे।
  • एयरटेल भारती के भी 247 करोड़ के electoral Bond खरीदे गए थे।
  • एस्सेल माइनिंग कॉर्पोरेशन द्वारा 224 करोड़ के बॉन्ड खरीदे गए थे।

अब आगे क्या ?

अब जब यह पूरी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के अधीन है तो वह इसकी निष्पक्ष जांच करेगी। एसबीआई ने पूरी जानकारी चुनाव आयोग को दे दी है।

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